द कश्मीर फाइल्स मूवी रिव्यू / The Kashmir Files Movie Review
सच को जब 32 वर्षों तक छिपाया जाए और फिर अचानक से वो सामने आ जाए तो ये सच, इतना ज्यादा सच होता है कि झूठ ही लगने लगता है। अभी आई फिल्म #TheKashmirFiles की यही कहानी है। किसी महिला को उसके ही पति के खून से सने चावल खिलाना, किसी महिला को दो टुकड़ों में काट देना, लोगों को मार-मार कर पेड़ो पर लटका देना और गोली को बच्चों तक के सिर के आर-पार कर देना – सब सच है, लेकिन इतना सच है कि झूठ लगने लगेगा।
इस सच को हमें न सिर्फ स्वीकार करना होगा, बल्कि दुनिया को भी बताना होगा कि कश्मीरी हिन्दुओं का पलायन नहीं, बल्कि ‘नरसंहार’ हुआ था। हमें बॉलीवुड को बताना होगा कि मार्तण्ड सूर्य मंदिर ‘हैदर’ फिल्म के ‘डेविल डांस’ के लिए नहीं है, बल्कि हमारे उस इतिहास को याद करने के लिए है जिसने इस मंदिर की ये दुर्दशा की। माँ शारदा कश्मीरियों की देवी है, आज POK में इस मंदिर की क्या हालत है ये किसी से छिपा नहीं है।
मेरा आग्रह खासकर के 18-25 उम्र वर्ग के लोगों से है – आप जाइए और ‘द कश्मीर फाइल्स’ को देखिए। अभिभावकों को चाहिए कि वो युवाओं को ये फिल्म देखने के लिए प्रेरित करें। कई चीजें ऐसी हैं जो मुझे भी नहीं मालूम थीं, लेकिन मैंने देखा और जाना। जिस मीर शमशुद्दीन ऐराकी को सब ‘सूफी संत’ कहते हैं, वो असल में यहाँ शिया एजेंडा चलाने आया था, क्रूरता के बल पर। ललितादित्य कौन थे और कश्मीर से उनका क्या नाता है, ये फिल्म देख कर ही आपको पता चलेगा।
इतना ही नहीं, कई लोगों को ये भी पता नहीं है कि महर्षि कश्यप की तपस्या के कारण इस प्रदेश का नाम कश्मीर पड़ा और उन्होंने इसे रहने लायक ‘स्वर्ग’ बनाया, किसी मुग़ल बादशाह या इस्लामी शासक ने नहीं। शंकराचार्य ने केरल से पैदल चल कर कश्मीर पहुँच कर हिन्दू धर्म का पताका फिर से लहराया। जहाँ पंचतंत्र लिखा गया, वो कश्मीर है। ये विद्वानों की भूमि है, सूफियों और इस्लामी आक्रांताओं की तो बिलकुल भी नहीं।
दुनिया भर में इस तरह की हिंसा पर काफी फ़िल्में बनी हैं। रवांडा में हुए नरसंहार पर ‘100 Days (2001)’ से लेकर ’94 Terror (2018)’ तक एक दर्जन फ़िल्में बनीं। हिटलर द्वारा यहूदियों के नरसंहार पर तो ‘The Pianist (2002)’ और ‘Schindler’s List’ (1993) जैसी दर्जनों फ़िल्में बन चुकी हैं। कंबोडिया के वामपंथी खमेर साम्राज्य पर The Killing Fields (1984) तो ऑटोमोन साम्राज्य द्वारा अर्मेनिया में कत्लेआम पर Ararat (2002) और ‘The Cut (2014)’ जैसी फ़िल्में दुनिया को मिलीं।
लेकिन अफ़सोस कि मुगलों द्वारा किए गए हिन्दुओं के नरसंहार से लेकर कश्मीरी पंडितों तक की व्यथा पर कोई फिल्म नहीं बनी। महमूद गजनी से लेकर यासीन मलिक तक की करतूतों को उलटा छिपाया ही गया, न तो हमने इतिहास में पढ़ा और न ही बॉलीवुड ने सच दिखाने की जहमत उठाई। कश्मीरी पंडितों पर विधु विनोद चोपड़ा ने फिल्म बना कर उलटा उन्हें ही सॉरी बोलने को कह दिया। उनकी समीक्षक पत्नी अनुपमा चोपड़ा ‘The Kashmir Files’ को नीचा दिखाने में लगी हैं। लेकिन नहीं, हम देखेंगे। लाजिम है कि हम देखेंगे!