नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ – बड़ी बड़ी समस्याओं को आसानी से सुलझा देते थे
हनुमान जी का विग्रह सीमेंट से बनाया गया था तब महाराज जी की आज्ञानुसार लाखों की संख्या में राम-नाम लिखकर भक्तों द्वारा राम नाम लिखे कागजों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर गारे में मिलाया गया। हनुमान जी का सब कुछ तो बन गया पर मुखमण्डल नहीं बन पा रहा था।
कारीगर को भी इस कारण हताशा ने घेर लिया, तथा भक्तों के मन में भी क्षोभ एवं निराशा व्याप गई। सभी महाराज जी से मन ही मन प्रार्थना करने लगे तब एक भक्त (श्री शिवदत्त जोशी) की कन्या रजनी को, जो उस समय बाल्यावस्था में ही थी, स्वप्न की-सी अर्धचेतना में आकाशवाणी सदृश शब्दों में महाराज जी का आदेश सुनाई दिया कि, दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज काहू नहि व्यापा का सम्पुट लगाकर अखण्ड रामायण का पाठ सुनाओ हनुमान जी को।
सरल बुद्धि बालिका ने उतनी ही सरल-हृदया अपनी माँ से यह सब कह सुनाया तो उसी परिवार ने पहिले, और फिर अन्य भक्तों ने भी, इसी सम्पुट के साथ अखण्ड रामायण के पाठ पूर्ण कर दिये और तब एक सप्ताह के अन्दर हनुमान जी का मुखमण्डल भी बन गया !! भक्तों में हर्षोल्लास की सीमा न रही ।
परन्तु यह भी महाराज जी की ही एक और लीला थी वे तो जनता तथा भक्तों के अन्तर में अपने सभी मंदिरों के प्रति इसी प्रकार की अनेक दैवी प्रक्रियाओं के माध्यम से पूर्ण आस्था-निष्ठा उत्पन्न करते रहते थे (जैसा अन्य मंदिरों के बारे में आगे वर्णित है ।) इस मंदिर हेतु बाबा जी द्वारा की गई अलौकिक लीलाओं में से कुछ सन्दर्भ इस प्रकार
हनुमान विग्रह प्रतिष्ठा समारोह हेतु एक वृहद् भण्डारे की योजना बनी । तब गढ़ में न बिजली थी न पानी की व्यवस्था, न लकड़ी-कोयला, राशन, घी-तेल का ही भण्डारण और न बर्तन-भांडे ही थे। राशन के लाने हेतु समुचित मार्ग भी न था । तीन दिन रह गये थे । परन्तु इतनी मूसलाधार वर्षा होती रही रात दिन कि थमने का नाम । जो भक्त बाबा जी के साथ थे यही सोचते रहे कि अब (शायद किसी को इस लाचारी को देख बाबा जी की शक्ति पर ही शंका हो चली हो ।
सुबह के समय वर्षा कुछ थम सी गई तो बाबा जी । कहा, “जाओ, बेकार बैठे हो यहाँ । नीचे सामान लेकर एक ट्रक खड़ा है। लाओ उसे ।” तब भक्तगण नीचे पहुंचे तो देखा कि वास्तव में प्रचुर मात्रा में समस्त प्रकार की सामग्री लिए एक ट्रक खड़ा है ॥
बाबा जी द्वारा सम्पन्न विचित्र सृजनात्मक लीलाएँ ही थीं दोनो। डोट्यालो एवं पत्तलों के व्यापारी की ऐन वक्त पर गढ़ के पास उपस्थिति घटनाक्रम में उपजी उक्त विकट समस्याओं का इतनी सहजता से समयबद्ध निराकरण ।
अब समस्या हुई कि इतनी अधिक मात्रा की भारी सामान बरसात के कारण और भी अधिक क्षतिग्रस्त एवं फिसलनदार हो चुकी बजरी की पगडंडी से ऊपर कैसे चढ़ाया जायेगा ? परन्तु महाराज जे तो दूसरा ही खेल चल रहा था । ठीक उसी समय उसी राह से डोटयालों (पर्वतीय कुलियों) का एक दल गुजर रहा था । समुचित पारिश्रमिक का उनके द्वारा बात की बात में सारा सामान पर पहुंच गया।
सब प्रकार की सामग्री तो आ गई परन्तु प्रसाद पवाने हेतु पत्तलें नहीं आई थी। विषम परिस्थिति आ गई कि कल भण्डारा है और जब पत्तलें नहीं (जो केवल हल्द्वानी-बरेली से ही आ सकती थी दूसरे दिन तब पुनः ऐसी ही एक अदभुत लीला के माध्यम से बाबा महाराज ने पत्तलें भी उपलब्ध करा दीं । गढ़ के ठीक नीचे उसी समय सड़क पर एक पत्तलों के व्यापारी से !
बाबा जी द्वारा सम्पन्न विचित्र सृजनात्मक लीलाएँ ही थीं दोनो। डोट्यालो एवं पत्तलों के व्यापारी की ऐन वक्त पर गढ़ के पास उपस्थिति घटनाक्रम में उपजी उक्त विकट समस्याओं का इतनी सहजता से समयबद्ध निराकरण ।
(अनन्त कथामृत और टी एन ऐ से साभार)


