पहले जानिये एमएसपी है क्या ? जिस एमएसपी को लेकर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा है
कृषि विधेयकों के पास होने के बाद एक बार फिर एमएसपी चर्चा में है। किसान और कृषि जानकारों को लग रहा है कि कृषि बिल के बाद एमएसपी की व्यवस्था खत्म हो जायेगी, हालांकि सरकार इससे इनकार कर रही है। आखिर एमएसपी क्या है, क्या इससे किसानों को लाभ मिलता है?
पहले जानिये एमएसपी है क्या?
किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू है। अगर कभी फसलों की कीमत बाजार के हिसाब से गिर भी जाती है, तब भी केंद्र सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है ताकि किसानों को नुकसान से बचाया जा सके। किसी फसल की एमएसपी पूरे देश में एक ही होती है और इसके तहत अभी 23 फसलों की खरीद की जा रही है। कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन कृषि लागत और मूल्य आयोग ( कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेस CACP) की अनुशंसाओं के आधार पर एमएसपी तय की जाती है।
एमएसपी का इतिहास भी जानिये
आजादी के बाद से ही देश के किसानों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। किसानों को उनकी मेहनत और लागत के बदले फसल की कीमत बहुत कम मिल रही थी। कृषि जिंसों की खरीद-बिक्री राज्यों के अनुसार ही हो रही थी। जब अनाज कम पैदा होता तो कीमतों में खूब बढ़ोतरी हो जाती, ज्यादा होता तो गिरावट। इस स्थिति में सुधार के लिए वर्ष 1957 में केंद्र सरकार ने खाद्य-अन्न जांच समिति (Food-grains Enquiry committee) का गठन किया। इस समिति ने कई सुझाव दिये लिए उससे फायदा नहीं हुआ। तब सरकार ने अनाजों की कीमत तय करने के बारे में सोचा। इसके लिए वर्ष 1964 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने अपने सचिव लक्ष्मी कांत झा (एलके झा) के नेतृत्व में खाद्य और कृषि मंत्रालय (अब ये दोनों मंत्रालय अलग-अलग काम करते हैं) ने खाद्य-अनाज मूल्य समिति (Food-grain Price Committee) का गठन किया। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का मत था कि किसानों को उनकी उपज के बदले कम से कम इतने पैसे मिलें कि उनका नुकसान ना हो। तब देश के कृषि मंत्री थे चिदंबरम सुब्रमण्यम।
कृषि मंत्री का कहना है कि सरकार गारंटी देगी कि किसानों को MSP मिलेगा।
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) September 20, 2020
निजी व्यापार आज भी होता है, लेकिन किसानों को दिया जाने वाला मूल्य MSP की तुलना में काफी कम होता है। अगर कृषि मंत्री जादुई रूप से MSP सुनिश्चित कर सकते हैं, तो उन्होंने अब तक ऐसा क्यों नहीं किया?
खाद्य-अनाज मूल्य समिति में एलके झा के साथ टीपी सिंह (सदस्यए योजना आयोग), बीएन आधारकर (आर्थिक मामलों के अतिरिक्त सचिव, वित्त मंत्रालय), एमएल दंतवाला (आर्थिक कार्य विभाग ) और एससी चौधरी (आर्थिक और सांख्यिकीय सलाहकार, खाद्य और कृषि मंत्रालय) भी शामिल थे।
डॉ बीवी दूतिया (उप आर्थिक और सांख्यिकीय सलाहकार, खाद्य और कृषि मंत्रालय) को इस कमिटी का सचिव नियुक्त किया गया। कमिटी ने 24 दिसंबर 1964 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 24 दिसंबर 1964 को इस पर मुहर लगा दी, लेकिन कितनी फसलों को इसके दायरे में लाया जायेगा, यह तय होना अभी बाकी था।
क्या किसानों को एमएसपी मिलता भी या ये कितना फायदेमंद है? भले ही एमएसपी को लेकर किसान चिंतित हैं या सरकार बार-बार कह रही है कि एमएसपी पर खरीद पहले जैसे ही होती रहेगी, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। इसीलिए कृषि मामलों के जानकार हमेशा एमएसपी पर गारंटी कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। एमएसपी की व्यवस्था देश में पहले से ही है, लेकिन क्या ये किसानों को मिलता है, इसे हम उदाहरण से समझते हैं। इससे आप यह भी समझेंगे कि कृषि विधेयकों में एमएसपी का जिक्र न होने से किसान नाराज क्यों है? मध्य प्रदेश के जिला हरदा, तहसील हंडिया के गांव देवास के रहने वाले किसान राहुल पटेल को मूंग से इस साल साढ़े तीन लाख रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “इस साल मेरे यहां अच्छी बारिश हुयी थी। ऐसे में मैंने 80 एकड़ में मूंग लगा दिया। कीटों के प्रकोप के कारण पैदावार घट गयी।
पहले प्रति एकड़ में 6 से 7 कुंतल मूंग होता था, इस बार 4-5 कुंतल प्रति एकड़ ही निकला। नुकसान तो हमें फसल काटते ही हो गया। रही सही कसर मंडी में पूरी हो गयी।” “मेरे यहां हरदा मंडी में मूंग की कीमत जुलाई में 5,300 से 5,500 रुपए थी। मैंने 5,400 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से 200 कुंतल मूंग बेचा। सरकारी दर के हिसाब से देखेंगे तो मुझे साढ़े तीन लाख रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ। पिछले साल मैंने खुद 6,000 से 9,000 रुपए कुंतल में मूंग बेचा था। पैसों की जरूरत थी इसलिए 200 कुंतल बेचना पड़ा।” वे आगे कहते हैं। लॉकडाउन में किसानों को हुए नुकसान से राहत देने के लिए केंद्र सरकार ने 14 खरीफ फसलों की एमएसपी में बढ़ोतरी की थी। बढ़ोतरी के बाद मूंग की एमएसपी 7,196 रुपए प्रति कुंतल और उड़द की एमएसपी 6,000 रुपए प्रति कुंतल हो गयी।
समाधान क्या है?
20 सितंबर को जब राज्यसभा में कृषि से जुड़े दो बिल कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 और कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) क़ीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर क़रार विधेयक, 2020 पारित किए गए तब विपक्ष ने सरकार से एमएसपी पर सवाल पूछे। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला कहा कि ये विधेयक देश के सबसे अंधकारमय कानून माने जाएंगे। उन्होंने कहा, “मोदी सरकार ने देश के किसान और उनकी रोजी-रोटी पर आक्रमण किया है। ये देश के सबसे अंधकारमय कानून माने जाएंगे।
किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिलेगा कैसे? साढ़े 15 करोड़ किसानों को एमएसपी देगा कौन? अगर बड़ी कंपनियों ने एमएसपी पर फ़सल नहीं खरीदी तो उसकी गारंटी कौन देगा? आपने एमएसपी की अनिवार्यता को कानून के अंदर क्यों नहीं लिख दिया?” गांव कनेक्शन के सर्वे (वर्ष 2019) में यह सामने आया कि फसल खरीद की जो भी प्रक्रिया अभी चल रही है, किसान उससे नाराज हैं। सर्वे में शामिल 18,267 लोगों में से 62.2 फीसदी किसान ने कहा कि वे चाहते हैं कि उनकी फसल की कीमत पर उनका अधिकार होना चाहिए, इसे तय करने का अधिकार उनके पास हो।

