जानिए क्यों कोरोना वायरस की वैक्सीन शायद कभी नहीं आएगी ?
प्रोफेसर इयान फ़्रेज़र जिन्होंने HPV वायरस की वैक्सीन बनाई थी, उनका कहना है की ज्यादा संभावना ये है की कोरोना वायरस की वैक्सीन कभी बनेगी ही नहीं।
उन्होंने कहा की हज़ारों कम्पनीज इसकी वैक्सीन बनाने पर काम कर रही है लेकिन किसी के पास कोई मॉडल नहीं है वैक्सीन बनाने का सब तुक्के मार रहे हैं।
उन्होंने कहा की upper respiratory tract diseases के लिए वैक्सीन बनाना लगभग नामुमकिन रहता है जैसा की जुकाम के लिए भी है, क्यूंकि इनमे वायरस आपके बाहरी तरफ पर लैंड करता है।
उनके हिसाब से हमारा शरीर एक फुटबॉल की तरह है जिसमे हमारी खाल और respiratory tract बाहरी चीज़ें है जबकि अंदरूनी चीज़ों की शुरुआत फेफड़ों से होती है।
अब कोरोना वायरस में भी क्या हो रहा है की वो बाहरी हिस्से पर बैठ कर हमारे अंदरूनी हिस्से के सेल्स को इन्फेक्ट करना शुरू करता है।
हमारा इम्यून सिस्टम एक अंदरूनी हिस्सा है, इसलिए जब वायरस सेल्स की ऊपरी लेयर को इन्फेक्ट कर देता है उसके बाद इम्यून सिस्टम उसपर अटैक करता है। यानी पहला अटैक वायरस का हो गया होगा तभी इम्यून सिस्टम रियेक्ट करेगा। लोग बीमार भी इसीलिए होते हैं इसमें symptom के तौर पर क्यूंकि दोनों तरफ से हमले होते हैं।
और इसमें खेल ये है की अगर हमारा इम्यून सिस्टम ज्यादा ताकत से इसपर हमला करता है तो भी ये फेफड़ों को डैमेज कर सकता है !
इसलिए वैक्सीन अगर ज्यादा ही बढ़िया बन गयी तो भी चांस ये ही है की जो नहीं मरना होगा उसे भी मार देगी !
ऐसे वायरस का इलाज होना चाहिए ऐसी वैक्सीन जो इम्यून रिस्पांस ऐसा क्रिएट करे जो शरीर के बाहरी हिस्से(upper respiratory system और फेफड़ों की आउटर लेयर) पर वायरस के बैठते ही उसपर अटैक करे। और इसपर कोई रिसर्च मौजूद नहीं है अभी । इसीलिए आजतक जुकाम की भी कोई वैक्सीन नहीं बन पाई है।
प्रोफेसर फ़्रेज़र ने बताया की 2003 वाले कोरोना वायरस के लिए भी इसीलिए कोई वैक्सीन नहीं बन पाई, लेकिन ये खुद बा खुद कमज़ोर होता गया।
एक इंसान से दुसरे पर जाने के बाद इसकी शक्ति कम होती गयी और इसीलिए ये धीरे धीरे बेअसर हो गया और इन्फेक्ट करने की ताकत लगभग खो बैठा ।
उन्होंने इस वाले कोरोना वायरस के बारे में भी कहा की इसमें उस से भी कम ताकत है हमें बीमार करने की, और ये उस से भी जल्दी खुद को बेअसर कर लेगा इन्फेक्ट करने में।
उन्होंने कहा की हम लोग इस वायरस में आये बदलावों को मॉनिटर कर रहे हैं, और ये देखा जा रहा है की चीन से ही जब ये बाहर निकला तो इसकी ताकत में थोड़ी सी कमी आयी थी।
ऑस्ट्रेलिया में अभी ये और भी कमज़ोर हुआ है लोगों को इन्फेक्ट करने में।
प्रोफेसर ने कहा के ये 2015 वाले MERS से काफी कम ताकतवर और कम जानलेवा है।
और ये पहले के कोरोना वायरस के मुकाबले जल्दी बेअसर हो जाएगा अपने आप, किसी भी वैक्सीन के इफेक्टिव मॉडल के बनने से भी पहले ।